जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा 1977
--- लगातार
बढ़ते जल प्रदूषण के प्रति सरकार का ध्यान 1960 के दशक में गया और वर्ष 1963 में गठित समिति ने जल
प्रदूषण निवारण व नियंत्रण के लिए एक केंद्रीय कानून बनाने की सिफारिश की। वर्ष 1969 में केंद्र सरकार द्वारा एक
विधेयक तैयार किया गया जिसे संसद में पेश करने से पहले इसके उद्देश्यों व कारणों
को सरकार द्वारा इस प्रकार बताया गया, ‘‘उद्योगों की वृद्धि तथा शहरीकरण की
बढ़ती प्रवृति के फलस्वरूप हाल के वर्षो में नदी तथा दरियाओं के प्रदूषण की समस्या
काफी आवश्यक व महत्त्वपूर्ण बन गयी है। अत: यह आश्वस्त किया जाना आवश्यक हो गया है
कि घरेलु तथा औद्योगिक बहिस्राव उस जल में नहीं मिलने दिया जाऐं जो पीने के पानी
के स्रोत, कृषि
उपयोग तथा मट्टस्य जीवन के पोषण के यो,य हो, नदी व दरियाओं का प्रदूषण भी देश की
अर्थव्यवस्था को निरंतर हानि पहुँचाने का कारण बनता है’’।
यह
विधेयक 30 नबम्बर, 1972 को संसद में प्रस्तुत किया
गया। दोनों सदनों से पारित होकर इस विधेयक को 23 मार्च, 1974 को राष्ट्रपति की स्वीकृति
मिली जो जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 कहलाया। यह अधिनियम 26 मार्च, 1974 से पूरे देश में लागू माना
गया। यह अधिनियम भारतीय पर्यावरण विधि के क्षेत्र में पहला व्यापक प्रयास है जिसमें
प्रदूषण की विस्तृत व्याख्या की गई है। इस अधिनियम ने एक संस्थागत संरचना की
स्थापना की ताकि वह जल प्रदूषण रोकने के उपाय करके स्वच्छ जल आपूर्ति सुनिश्चित कर
सके। इस कानून ने एक केंंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा राज्यों के
प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो की स्थापना की। इस कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति जो जानबूझकर
जहरीले अथवा प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों को पानी में प्रवेश करने देता है, जो कि निर्धारित मानकों की
अवहेलना करते हैं, तब
वह व्यक्ति अपराधी होगा, तथा
उसे कानून में निर्धारित दंड दिया जायेगा। इस कानून में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के
अधिकारों को समुचित शक्तियाँ दी गई हैं ताकि वे अधिनियम के प्रावधानों को ठीक से
कार्यान्वित कर सकें। इस प्रकार जल प्रदूषण को रोकने की दिशा में यह कानून सरकार
द्वारा उठाया गया महत्त्वपूर्ण कदम था।
जल
प्रदूषण को रोकने में जल (प्रदूषण और नियंत्रण) अधिनियम, 1977 भी एक अन्य महत्त्वपूर्ण
कानून है जिसे राष्ट्रपति ने दिसम्बर, 1977 को मंजूरी प्रदान की। जहाँ एक ओर यह
जल प्रदूषण को रोकने के लिए केंद्र तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को व्यापक
अधिकार देता है वहीं जल प्रदूषित करने पर दंड का प्रावधान भी करता है। यह अधिनियम
केंद्रीय तथा राज्य प्रदूषण बोर्डों को निम्न शक्तियाँ प्रदान करता हैं:
o किसी भी
औद्योगक परिसर में प्रवेश का अधिकार
o किसी भी जल
में छोडे जाने वाले तरल कचरे के नमूने लेने का अधिकार
o औद्योगिक ईकाइयां
तरल कचरा तथा सीवेज के तरीकों के लिए बोर्ड से सहमति लें,
o बोर्ड किसी
भी औद्योगिक इकाई को बंद करने के लिए कह सकता है। वह दोषी इकाई को पानी व बिजली
आपूर्ति भी रोक सकता है।
इस
प्रकार जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा 1977 जल प्रदूषण नियंत्रण के
महत्त्वपूर्ण यंत्र हैं। ये न केवल विषैले, नुस्सादेह और प्रदूषण फैलाने वाले
कचरे को नदियों और प्रवाहों में फैकने पर रोक लगाने की व्यवस्था करते हैं बल्कि
प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को अधिकार देते हैं कि वे प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ
कार्रवाई करें। बोर्ड इन नियमों का उल्लंघन करने वालों व प्रदूषण फैलाने वालों के
खिलाफ मुकदमा भी चला सकता है। जल कर अधिनियम 1977 में यह प्रवधान भी है कि कुछ
उद्योगों द्वारा उपयोग किए गये जल पर कर देय होगा। इन संसाधनों का उपयोग जल
प्रदूषण को रोकन के लिए किया जाता है।

No comments:
Post a Comment